tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post5794462461225244084..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: चले गए अरुण प्रकाश, उन्हें तो जाना ही थाविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-7215405170803193142012-06-19T22:49:05.641+05:302012-06-19T22:49:05.641+05:30विनम्र श्रद्धांजलि अरुण प्रकाश जी कोविनम्र श्रद्धांजलि अरुण प्रकाश जी कोBS Pablahttps://www.blogger.com/profile/06546381666745324207noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-87251793766812807732012-06-19T06:36:04.570+05:302012-06-19T06:36:04.570+05:30अफ़सोस! विनम्र श्रद्धांजलि अरुण प्रकाश जी को!अफ़सोस! विनम्र श्रद्धांजलि अरुण प्रकाश जी को!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-11137988775306028292012-06-19T05:44:44.178+05:302012-06-19T05:44:44.178+05:30पहली बार इतना जाना, विनम्र श्रद्धांजलि..पहली बार इतना जाना, विनम्र श्रद्धांजलि..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-73346140229475951552012-06-19T02:19:46.673+05:302012-06-19T02:19:46.673+05:30कल ही अरुण जी की कहानी ’नहान’ पढ़ रहा था और उन्हें ...कल ही अरुण जी की कहानी ’नहान’ पढ़ रहा था और उन्हें शिद्दत से याद कर रहा था। साहित्य अकादमी में ही उनसे अन्तिम भेंट हुई थी। फिर मिलना नहीं हुआ। याद उन्हें अक्सर करता था। पर कभी उनके बारे में सोचा ही नहीं कि वे कहाँ होंगे, क्या कर रहे होंगे। मुझे तो ये भि पता नहीं था कि वे बीमार हैं। सचमुच हम क्रूर और आत्मकेन्द्रित हो गए हैं। मुझे अब अपनी काहिली और लापरवाही के ऊपर गुस्सा आ रहा है कि मैं मार्च में उनसे मिलने क्यों नहीं गया। जबकि मास्को से यह सोचकर भारत गया था कि इस बार अरुण प्रकाश से मिलना है। लेकिन भारत पहुँचकर भूल गया यह बात। सचमुच दुखी हूँ।अनिल जनविजयhttps://www.blogger.com/profile/02273530034339823747noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-66693644843096879032012-06-19T01:54:23.409+05:302012-06-19T01:54:23.409+05:30क्या कहूं..हमारी नियति ही कुछ ऐसी हो गयी है. कुछ स...क्या कहूं..हमारी नियति ही कुछ ऐसी हो गयी है. कुछ समय के पहले अदम जी के दिवंगत होने के बाद मुझे परिवेश संबंधी बेहद त्रासद अनुभव हुआ था. परिवेश के मौकापरस्त व्यवहार पर एक सी पुनरावृत्ति दिखती है. सही कहा आपने, इसकी अनुभूति उन्हें थी, 'अरे विनीत, साहित्य अकादमी का जमाना था..लाइन लगाए रहते थे लोग..अरुणजी ये लिखा है, वो देख लीजिए, यहां चल दीजिए...अब सब विजी है, व्यस्त हो गए..होने दो,समय किसका हुआ है ?' <br /> संयोग से मैं अरुण जी से एक ही बार मिला था, एक मित्र मिलने गए थे उन्हीं के साथ, साहित्य अकादमी में. पर हाँ बाद में कभी न मिल पाने की कचोट आज बहुत है. हम अभागे रहे, हमें बदलने की जरूरत है, परिवेश में हम भी तो हैं!Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.com