tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post150247223141873720..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: दिल्ली में हर गाली बेअसर लगती है..विनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-70954262605049699302010-07-16T08:43:04.029+05:302010-07-16T08:43:04.029+05:30आगे की पोस्ट का इंतजार अभी से।
गालियां समाज की अभ...आगे की पोस्ट का इंतजार अभी से।<br /><br />गालियां समाज की अभिव्यक्ति का हिस्सा हैं। शायद ऐसा हिस्सा जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। <br /><br />मुझे इस बात का सदा से कौतूहल रहा है कि गालियां कैसे शुरू हुई होंगी अपने समाज में। कैसे अधिकतर गालियां स्त्रियों की मानहानि सी करते अंदाज में गढ़ीं गयीं। इस पर मैंने एक लेख भी लिखा था कभी- <a href="http://hindini.com/fursatiya/archives/55" rel="nofollow">गालियों का सामाजिक महत्व।</a><br /><br />सभ्य समाज में भदेस गालियां वर्जित सी मानी जाती हैं। साहित्य में राही मासूज रजा के पात्र तो धड़ल्ले से गालियां देते रहे। बाकी लोग इशारों से काम चलाते रहे। अब काफ़ी खुलापन आया है लिखा पढ़ी है।<br />रवीन्द्र कालिया के उपन्यास <b> खुदा सही सलामत है</b> की पात्र हजरी बी गालियों वाले शब्द उल्टे करके बोलती हैं- <b>तुम्हारी नेतागिरी तुम्हारी ही डॉंग में घुसेड़ दूंगी। </b> <br /><br />अगले लेख का इंतजार है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-40232899565929863782010-07-14T21:53:07.027+05:302010-07-14T21:53:07.027+05:30मेरे विचार में सभी बलॉगर बंधुओं को अपनी टिप्पणी मे...मेरे विचार में सभी बलॉगर बंधुओं को अपनी टिप्पणी में भी भद्दी गालिओं के प्रयोग के लोभ से बचना चाहिए ! सिर्फ़ सांकेतिक उपयोग ही उपयुक्त रहे गा .... गालियों का पूर्ण रूप लगभग सभी लोग जानते ही होंगेM L Duahttps://www.blogger.com/profile/13188794229756625874noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-6999449544940014502010-07-14T14:00:47.059+05:302010-07-14T14:00:47.059+05:30धन्यवाद् एक और मजेदार चर्चा के लिए,
यहाँ एक बात म...धन्यवाद् एक और मजेदार चर्चा के लिए,<br /><br />यहाँ एक बात मैं और जोड़ना चाहता हूँ कई बार इन गालियों में भी प्यार टपकता है, दिल्ली, यहाँ आपस में दोस्तों के बाच आम बोलचाल की भाषा में अबे गांडू साले से लेकर बहन के लौंडे प्यार टपकाती है. और तो और अब लड़कियां भी दोस्तों के बीच गाली-गलौच की भाषा में ही बात करती हैं.<br /><br />कुछ भी हो जहाँ ये गालियाँ मार-पिटाई के लिए मशहूर हैं वहीं दूसरी ओर दोस्ती की गप्पबाजी में चार चाँद भी लगाती हैं.Shishupal Prajapatihttps://www.blogger.com/profile/12762647939228887562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-28395392256721152572010-07-14T00:20:23.210+05:302010-07-14T00:20:23.210+05:30नपुंसक मानसिकता की उपज है यह सब . इसीलिये कहा जाता...नपुंसक मानसिकता की उपज है यह सब . इसीलिये कहा जाता है दिल्ली में कल्चर नहीं वल्चर है . दुख तो इस बात का है की जो सभ्रांत परिवारों से यहाँ लोग पहुँचे वो भी इस धारा मैं बह गए.<br />अगर गलियों का शास्त्र ही लिखना है तो भोपाल और लखनऊ पर भी नजर डालियेडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-47233025010632571612010-07-13T23:44:40.953+05:302010-07-13T23:44:40.953+05:30यकीन मानो विनीत, कल अगर मेरी जबान से गाली सुनो तो ...यकीन मानो विनीत, कल अगर मेरी जबान से गाली सुनो तो यही समझना कि मैं सोच समझ कर गाली दे रहा हूँ.. मैं अमूमन ना तो गाली देना पसंद करता हूँ और ना ही सुनना.. कई दफे सुन कर रिएक्ट नहीं करता हूँ तो उसकी अपनी मजबूरी होती है.. मैं अभी भी एक महानगर में उसी कसबे के भीतर जी रहा हूँ जिसके बारे में तुमने लिखा है "हममें से अधिकांश लोग उस परिवेश से आते हैं जहां स्साला भर बोल देने से सामनेवाला कॉलर पकड़ लेता है,कई बार पटककर मारने पर उतारु हो जाता है। मां-बहन की गाली देने पर खून-खराबे तक की नौबत आ जाती है।"<br /><br />एक मजेदार वाकया सुनाता हूँ, "एक दफे एक भाई साहब फेसबुक पर मुझे माँ कि गाली दे बैठे, बहस करना उनके बस कि बात नहीं थी.. सुनकर मैंने उनसे सिर्फ इतना ही पूछा कि क्या आप भी उसी घर से आते हैं जहाँ बाप अपने बेटे को भैन*** कि गाली देता है.. बस सुनकर आग बबूला हो उठे.. बाद में मैंने उन्हें कहा कि आप जो कुछ भी लिख कर डिलीट कर रहे हैं, वो उन सभी के इनबाक्स में मेल की रूप में जा रहा होगा और आपकी औकात सभी को बता रहा होगा.. सुनकर भाग लिए वहां से.." :) वो भाई साहब आपके भी फ्रेंड लिस्ट में हैं.. ;)PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-3517111063577858832010-07-13T16:26:11.090+05:302010-07-13T16:26:11.090+05:30गालिया अब स्टेटस सिम्बल बन गयी है.. जो जितनी देगा ...गालिया अब स्टेटस सिम्बल बन गयी है.. जो जितनी देगा वो उतना ही बड़ा..<br />टीवी चैनलों की बात मैं भी करने वाला था पर आपने लिख ही दिया कि अगली पोस्ट में वही पढवायेंगे.. दीप्ती की जिस पोस्ट के बारे में आप कह रहे है <a href="http://looseshunting.blogspot.com/2008/12/blog-post_3108.html" rel="nofollow">शायद वो ये है..</a> उस समय कुछ लोगो ने तीखी प्रतिक्रियाये भी दी थी.. मैं गारंटी के साथ कह सकता हूँ वे लोग भी गालिया बोलते होंगे..<br /><br />लडकिया भी गाली बोलने लग गयी है जैसी बात मुझे खास इम्प्रेस नहीं करती.. दरअसल सारा समाज ही गालिया दे रहा है.. और उसमे लडकिया भी है.. लड़के भी है.. बच्चे भी है.. जवान भी है बूढ़े भी है.. अंग्रेजी गालिया तो स्लैंग्स बन गयी है.. जब मैं जयपुर के व्यस्तम चौराहे पर खडी कार को लगभग कट देते हुए गुज़रा.. तो कार के ड्राईवर ने खिड़की से मेरी तरफ अपनी फिंगर दिखा दी... हम दोनों ही मुस्कुरा दिए.. देखिये गालिया अब मुस्कुराहटो का कारण ही बन रही है..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-79920406285929280902010-07-13T13:38:15.581+05:302010-07-13T13:38:15.581+05:30अब समस्या दूसरी है .....पहले सिर्फ लड़के इस्तेमाल ...अब समस्या दूसरी है .....पहले सिर्फ लड़के इस्तेमाल थे ....अब लडकिया भी.एम् टी वि के रोडिएस में गलिया देकर फेशन स्टेटमेंट बना रही है .......फक ओर आस होल .तो अंग्रेजी में कोमन था ही.पर देसी गलिया..... ओर इस देश की नेश्गल गाली तो आपको हर प्रान्त में मिल जायेगी.....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-69826291461779021382010-07-13T13:10:57.720+05:302010-07-13T13:10:57.720+05:30क्या बात केवल दिल्ली की है? खैर, मैं दिल्ली तो नही...क्या बात केवल दिल्ली की है? खैर, मैं दिल्ली तो नहीं गया हूँ कभी इसलिए कह नहीं सकता लेकिन सुना है कि वहाँ गालियों का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है. मेरा एक चचेरा भाई नोएडा में पढ़ता है. पिछले हफ्ते ही मिलने आया था. वह बता रहा था कि कैसे दिल्ली स्टेशन पर एक रेलवे क्लर्क ने उसे केवल इसलिए गाली दे दी क्योंकि उसके हाथ में रिजर्वेशन के दो फार्म थे. न ही गाली देने और न ही सुनने के आदी मेरे भाई ने वहाँ मारपीट कर ली. आपकी पोस्ट अच्छी लगी. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा. शायद कुछ वजहों के बारे में पता चले. <br /><br />हो सकता है आनेवाले समय में 'दिल्ली में गालियों का आम प्रचलन' जैसे विषय पर कोई पी एचडी कर डाले...:-)Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com