tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post1119643086595702409..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: फेसबुकवा रोज पूछता है स्साला,दिमाग में क्या चल रहा हैविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-72083698263574607802010-01-08T18:32:18.888+05:302010-01-08T18:32:18.888+05:30भाई जी मैं तो इधर साल भर से हूं बंगलौर में । एक रे...भाई जी मैं तो इधर साल भर से हूं बंगलौर में । एक रेडियो चैनल पर एक साहब हैं घंटासिंह वे रोज एक विज्ञापन पढकर विज्ञापन वाले से ऐसे सवाल पूछते हैं कि बस दिमाग भी घटिंया जाता है। और सामने वाला खुदई फोन बंद कर देता है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-75000211730350669382009-03-21T07:44:00.000+05:302009-03-21T07:44:00.000+05:30फ़ेसबुक भी एक बवाल है। पूछता रोज एक सवाल है!फ़ेसबुक भी एक बवाल है। पूछता रोज एक सवाल है!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-23447985304687987362009-03-21T01:39:00.000+05:302009-03-21T01:39:00.000+05:30kuch alag baat hae sir jikuch alag baat hae sir jiइरशाद अलीhttps://www.blogger.com/profile/15303810725164499298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-80567950909551818942009-03-20T19:42:00.000+05:302009-03-20T19:42:00.000+05:30विनीत जहां मन का गुबार निकालने का मौक़ा मिलता है व...विनीत जहां मन का गुबार निकालने का मौक़ा मिलता है वहां सब आदमी सेन्टिया जाता है । <BR/>हम छोटे शहरों के लोग महानगरों में वईसे भी अपने मन में झांकने या अपने मन की बात कहने के चैनल खोजते हैं । <BR/>ई जो फेस-बुकवा है ना--ये सेन्टियाने का मेकेनिकल मीडियम लगता है हमको । <BR/>रोज सुबह खोलो तो एक बड़ा प्रश्नवाचक--आपके मन में क्या चल रहा है । <BR/>अब कोई पूछे तो हम का कहें--कहें कि ना कहें ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-58939602816875974332009-03-20T13:19:00.000+05:302009-03-20T13:19:00.000+05:30facebook kafi achi chiz hai bhai. acha raha analys...facebook kafi achi chiz hai bhai. acha raha analysisprabhat gopalhttps://www.blogger.com/profile/04696566469140492610noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-65529201750210250672009-03-20T13:16:00.000+05:302009-03-20T13:16:00.000+05:30पोस्ट पढकर कुछ लाईनों ने सोचने के लिए कहा। मसलन आप...पोस्ट पढकर कुछ लाईनों ने सोचने के लिए कहा। मसलन <BR/>आप गांव या कस्बों में जाइए और घर से फोल्डिग निकालिए औऱ फिर भी लोग नहीं बैठ रहे हैं, दो-चार मिनट रुककर नहीं बोल-बतिया ले रहे हैं तो समझिए की वो इलाका शहर होने की कगार पर है।<BR/> <BR/>हर पन्ने पर गीता की एक श्लोक। मुझे नहीं पता कि डायरी पर लिखे इन आदर्श वाक्यों में असल जिंदगी में कितना असर होता है लेकिन मैं ये सोचता हूं कि अगर कोई स्कूल ऐसी डायरी बनाए जिसमें जीवन के सूत्र वाक्य फेसबुक से उठाकर छाप दे तो कितना नैचुरल होगा और अपीलिंग भी,लगेगा ही नहीं कि कोई पाखंड है,<BR/><BR/>आदर्श सब टूट गया, संघर्ष सब छूट गया।<BR/><BR/>सोचने वाले का स्माईली कैसा होता है पता नही। अगर आपको पता हो तो लगा देना।सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.com