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8 मार्च को दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज की छात्रा राधिका तंवर की सरेआम हत्या का मुद्दा अधिकांश न्यूज चैनलों पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के उस बयान के विरोध पर आकर टिक गया जिसमें उन्होंने कहा कि समाज को भी अपनी जिम्मेदारी अपनी समझनी चाहिए। दक्षिण दिल्ली जिला पुलिस उपायुक्त एजीएस धारीवाल की उस बाइट को भी लगभग सभी चैनलों पर दिखाया गया जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यह हमारे लिए अफसोस की बात है कि अभी तक कोई भी व्यक्ति गवाह के तौर पर सामने नहीं आया है।

जाहिर है कि राधिका तंवर की हत्या दिल्ली के जिस इलाके में हुई वह व्यस्त इलाकों में से है और हत्या के वक्त भी सैंकड़ों लोग मौजूद होंगे लेकिन प्रशासन ने साफ तौर पर कहा कि कोई भी यह सब बताने के लिए सामने नहीं आया। दिल्ली या किसी भी ऐसे शहर के लिए एक बड़ा वाल है कि जहां लोगों के बीच घिरकर भी कोई सुरक्षा नहीं है। पुलिस और प्रशासनिक सुरक्षा के पहले एक सामाजिक सुरक्षा और अपराधियों का उसके प्रति भय होना चाहिए लेकिन वह पूरी तरह से खत्म होता जा रहा है। न्यूज चैनलों को चाहिए था कि वे इस सवाल पर गंभीरता से बात करे और उन पहलूओं को भी सामने लाए जिसकी वजह से लोगों की मौजूदगी में भी घटना का अंजाम देने में उन्हें कोई भय नहीं होता। लेकिन न्यूज चैनलों ने अपनी पूरी बहस और खबरें इस बात पर केंद्रित रखा कि प्रशासन पूरी तरह से नाकाम है,पुलिस पूरी तरह से लापरवाह है और मुख्यमंत्री की तरफ से जो बयान आए हैं, वह दरअसल अपनी व्यवस्था की कमजोरियों को ढंकने का नतीजा है।
न्यूज24 जैसे चैनल ने दावा किया कि पुलिस इस मामले को लेकर जो हरकरत में आयी है,ये उनकी ही मुहिम का असर है। चैनल के एंकर ने इस बात को आधे घंटे की बुलेटिन में आठ बार दोहराया। आइबीएन7 ने साफ तौर पर कहा कि ऐसे में दो-चार अधिकारियों को सूली पर लटका दिए जाएं,शायद तब यह समझा जा सकेगा कि सुरक्षा की जिम्मेदारी कितनी बड़ी चीज है? स्टार न्यूज ने एजीएस धारीवाल से खास मुलाकात की और उनकी लंबी बातचीत चैनल पर दिखाया। धारीवाल की पूरी बातचीत में यह बात बार-बार खुलकर सामने आयी कि लोग ऐसे मामले में पुलिस के साथ बिल्कुल नहीं आते,उना सहयोग नहीं करते और कोई भी गवाह के तौर पर सामने नहीं आता लेकिन एंकर किशोर आजवाणी इस पूरी बातचीत को पुलिस की नाकामी और उस मुहावरे की तरफ ले गए जिसमें पुलिस में शिकायत दर्ज करने का मतलब दूसरी बार पीड़ित होना है। देखते ही देखते तमाम चैनल ने इस पूरे मामले को लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है दिल्ली को एक मुहिम की शक्ल देने में जुट गए। इस हत्याकांड की सिलसिलेबार और फील्ड रिपोर्टिंग सिरे से गायब हो गयी। चैनलों के लिए इस तरह की घटनाएं छानबीन का हिस्सा कम पैकेज की शक्ल में जिसमें कि ज्यादा से ज्यादा विजुअल इफेक्ट, सिनेमाई ध्वनियां और नाट्य रुपांतर के तौर पर ग्राफिक्स बनाने का मामला ज्यादा हो जाता है। राधिका हत्याकांड मामले को चैनल आरुषि हत्याकांड की तरह न्यूज चैनल का सीरियल बनाने में जुटते नजर आए। इनके बीच खास आजतक ने ओफ्फ! ये दिल्ली नाम से अपने खास कार्यक्रम में जरुर संतुलन बनाने की कोशिश की और सुरक्षा,समाज के रवैये और इस पूरे मामले को गंभीरता से दिखाने का काम किया। टाइम्स नाउ पर अर्णव गोस्वामी ने शीला दीक्षित के बयान पर भी गंभीरतापूर्वक विचार करने की बात कही और यह सवाल उठाया कि हमें समाज के बदलते चेहरे पर भी बात करने की जरुरत है।

आप गौर करें तो ऐसी कोई भी घटना जिसमें कि पुलिस,प्रशासन,सरकार या फिर किसी दूसरी सार्वजनिक संस्थानों के नाम आते हैं, न्यूज चैनल उन्हें अधिक से अधिक जनविरोधी बताने में बहुत अधिक देर नहीं लगाते । ऐसा वे ऑडिएंस के प्रति अपनी पक्षधरता साबित करने के लिए करते हैं जिससे लगे कि वह उनके प्रति कितने चिंतित हैं। ऐसा करने के क्रम में वे सही-गलत और तथ्यों को नजरअंदाज करके एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश में लग जाते हैं जिससे नागरिक समाज के बीच उनके प्रति आक्रोश पैदा होने शुरु हो जाएं। वे उनके विरोध में आगजनी करें,तोड़-फोड़ मचाएं,सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचानी शुरु करें। चैनल इस सोच के साथ काम करते हैं कि जब ऐसे माहौल पैदा किए जाएंगे तो खबर में अधिक से अधिक भड़काउ फुटेज शामिल किए जा सकेंगे जिससे कि टीआरपी पैदा होने में आसानी होगी। लेकिन ऐसा करते हुए वे इस बात की रत्तीभर भी चिंता नहीं करते कि इससे एक सार्वजनिक संस्था के तौर पर पुलिस,प्रशासन,सरकार और लोकतंत्र की मशीनरी से लोगों का भरोसा उठता जाएगा। चैनल उन संस्थानों के प्रति कभी भी उतनी तल्खी नहीं दिखाते जो आम नागरिकों के अधिकारों को कुचलते हुए अपना विस्तार कर रहे हैं। शायद यही वजह है कि न्यूज चैनलों में कार्पोरेट,मीडिया,पूंजीपति वर्गों से जुड़ी नकारात्मक खबरें उसका हिस्सा नहीं बनने पाती। यह दरअसल लोगों के जज्बातों से खेलकर, लोकतंत्र को कमजोर कर उनके 
लिए रास्ता तैयार करना है जो कि आगे चलकर एक लाचार समाज के समूह में तब्दील होता जाएगा। राधिका तंवर को सैंकड़ों लोगों के सामने हत्या करनेवाला शख्स समाज की इसी कमजोरी की पैदाईश है जो किसी न किसी रुप में न्यूज चैनलों ने पैदा किए है और बिडंबना देखिए कि ऐसे लोगों को स्वयं इन चैनलों से भी कोई खास डर नहीं है। ऐसा करके मीडिया अपना ही असर कम कर रहा है। (मूलतः स्वाभिमान टाइम्स में प्रकाशित 16 मार्च 2011)



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